Indore Kalka Temple: इंदौर के पूर्वी क्षेत्र का प्रसिद्ध मां कालका मंदिर जहां मजदूरों की मेहनत से हुई थी स्थापना और आज भी मन्नत पूरी होने पर माता को चढ़ती है नींबू की माला

Indore Kalka Temple
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Indore Kalka Temple: आज हम आपको इंदौर शहर के उस खास मंदिर की कहानी सुनाने जा रहे हैं जो केवल एक धार्मिक स्थल ही नहीं बल्कि आस्था और श्रमिक वर्ग की मेहनत का प्रतीक भी है। यह मंदिर है पूर्वी क्षेत्र में स्थित प्रसिद्ध कालका मंदिर, जिसकी विशेषता यह है कि यहां स्थापित मां कालका की मूर्ति खास काले पत्थर से बनाई गई है।

1975 में इस मंदिर की स्थापना हुई थी। उस समय इंदौर की कपड़ा मिलों में काम करने वाले मजदूर यहां अपने खाली समय में जुटते थे और भजन गाते थे। स्वदेशी मिल के पास मौजूद एक बड़ा गड्ढा मजदूरों ने मिलकर भरा और वहां पर एक चबूतरा तैयार किया। इसी चबूतरे से मां कालका मंदिर की शुरुआत हुई। जयपुर से विशेष कारीगर बुलाए गए, जिन्होंने काले पत्थर से मां की छह फीट ऊंची भव्य मूर्ति बनाई और प्राण प्रतिष्ठा की गई।

मां कालका की यह प्रतिमा आज भी भक्तों को आकर्षित करती है। मंदिर का तोरण द्वार भी काले पत्थरों से बना हुआ है जो इसे और अधिक भव्य बनाता है। खासतौर पर शारदीय नवरात्र में मंदिर सुबह से रात तक खुला रहता है। अन्य दिनों में यह दोपहर में बंद रहता है। नवरात्र के समय यहां पूजा की बुकिंग पहले से ही हो जाती है और भक्त बड़ी संख्या में दर्शन के लिए पहुंचते हैं।

इस मंदिर की सबसे खास परंपरा है हरे नींबू की माला चढ़ाना। भक्त अपनी मनोकामनाएं पूरी होने पर मां को नींबू की माला अर्पित करते हैं। यहां 51 और 108 नींबुओं की माला चढ़ाने का विशेष महत्व है। मंगलवार शनिवार अमावस्या और पूर्णिमा के दिन मां कालका के दर्शन और नींबू की माला चढ़ाने का महत्व और भी बढ़ जाता है। मंदिर परिसर में लगी दुकानों पर नींबू की छोटी माला 51 रुपये और बड़ी माला लगभग 300 रुपये में मिलती है।

मंदिर की स्थापना में मजदूर वर्ग का बड़ा योगदान रहा था। अब जबकि मिलें बंद हो चुकी हैं तो भी यह मंदिर इंदौर शहर के सभी क्षेत्रों के लोगों की आस्था का प्रमुख केंद्र बन गया है। कई बुजुर्ग भक्त बताते हैं कि वे मंदिर की स्थापना के समय से यहां आते आ रहे हैं। यही कारण है कि यह मंदिर केवल धार्मिक स्थल ही नहीं बल्कि इंदौर के श्रमिक इतिहास का भी गवाह है।

आज भी सुबह और शाम की आरती में बड़ी संख्या में लोग शामिल होते हैं। यहां हर व्यक्ति मां कालका से अपने सुख-दुःख साझा करता है और जब उसकी मन्नत पूरी होती है तो वह नींबू की माला और पूजन सामग्री अर्पित करता है। यही परंपरा इस मंदिर को विशेष और अलग बनाती है।

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