जैविक खेती से बढ़ाएं आलू की पैदावार और मुनाफा पलामू के कृषि वैज्ञानिक ने बताए आसान तरीके

आलू

पलामू जिले से एक बेहद उत्साहजनक खबर सामने आई है। यहां के कृषि वैज्ञानिक डॉ अखिलेश शाह ने बताया है कि किसान यदि आलू की खेती में जैविक तरीकों का इस्तेमाल करें तो उनकी पैदावार गुणवत्ता और मुनाफा तीनों तेजी से बढ़ सकते हैं। जैविक तकनीकों से उगाए गए आलू बाजार में अधिक कीमत पाते हैं और स्वास्थ्य के लिए भी सुरक्षित माने जाते हैं। आजकल शहरों और ऑनलाइन बाजारों में जैविक उत्पादों की मांग तेजी से बढ़ रही है जिससे किसान की कमाई कई गुना तक बढ़ सकती है।

मिट्टी को जीवांश से भरपूर बनाना है पहला कदम

डॉ शाह बताते हैं कि जैविक खेती की नींव खेत की मिट्टी को उपजाऊ और जीवांश से भरपूर बनाने से शुरू होती है। जुताई के समय प्रति एकड़ बीस से पच्चीस क्विंटल गोबर की अच्छी तरह सड़ी खाद पांच किलो ट्राइकोडर्मा दस किलो नीमखली और दो क्विंटल वर्मी कम्पोस्ट मिलाकर खेत में डालें। इससे मिट्टी नरम होती है रोग कम होते हैं और आलू की गांठें मोटी बनती हैं। जैविक खाद पानी को रोककर रखती है जिससे सिंचाई पर आने वाला खर्च भी काफी कम हो जाता है।

अच्छे बीज से होती है बंपर पैदावार की शुरुआत

उच्च गुणवत्ता वाले बीज का चुनाव खेती की सबसे महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। तीस से चालीस ग्राम वजन वाले चिकने और रोग रहित आलू ही बोआई के लिए चुनें। डॉ शाह बताते हैं कि बोने से पहले बीज का उपचार करना बेहद जरूरी है। इसके लिए दस लीटर पानी में पचास ग्राम ट्राइकोडर्मा पचास मिली नीम तेल और पांच ग्राम स्यूडोमोनास मिलाकर बीज को तीस मिनट डुबोकर रखें। यह तरीका सस्ता भी है और झुलसा गलन और वायरस जैसे रोगों से मजबूत सुरक्षा भी देता है।

सही दूरी पर रोपाई से फसल रहती है स्वस्थ

आलू को सही दूरी पर लगाना उत्पादन बढ़ाने का बेहद प्रभावी तरीका है। पौधों की कतार दूरी पैंतालीस से साठ सेंटीमीटर और पौधे की दूरी बीस से पच्चीस सेंटीमीटर रखें। इससे पौधों को पर्याप्त धूप और खुली हवा मिलती है और फसल स्वस्थ रहती है। रोपाई के बाद मिट्टी में हल्की नमी बनाए रखना जरूरी है लेकिन अत्यधिक गीलापन सड़न बढ़ा सकता है।

जैविक पोषक घोल से बढ़ती है आलू की गांठ बनाने की क्षमता

डॉ शाह बताते हैं कि फसल की बढ़वार और गांठ बनने की प्रक्रिया को तेज करने के लिए जैवामृत और जीवामृत जैसे जैविक घोल बहुत लाभकारी हैं। प्रति एकड़ दो सौ लीटर जैवामृत तीस से पैंतीस दिन की अवस्था में डालने से मिट्टी में सूक्ष्म जीव सक्रिय होते हैं। ह्यूमिक एसिड समुद्री शैवाल और गौमूत्र आधारित घोल की दो से तीन बार स्प्रे करने से आलू की गांठें भारी बनती हैं और उत्पादन बीस से पच्चीस प्रतिशत तक बढ़ सकता है।

रोग और कीट नियंत्रण के लिए प्रभावी जैविक उपाय

आलू फसल में सबसे बड़ा खतरा झुलसा रोग और कीटों से होता है। जैविक उपाय बेहद सस्ते और कारगर हैं। पांच लीटर गौमूत्र पांच लीटर नीम अर्क और चालीस ग्राम ट्राइकोडर्मा का घोल हर पंद्रह दिन पर छिड़कें। इल्ली और पत्ती खाने वाले कीटों पर नियंत्रण के लिए नीम तेल और बवेरिया बेसियाना का प्रयोग करें। फेरोमोन ट्रैप और पीले चिपचिपे कार्ड लगाने से रासायनिक दवाओं की जरूरत लगभग समाप्त हो जाती है।

सिंचाई और मल्चिंग से मिलता है अतिरिक्त फायदा

जैविक खेती में बूंद बूंद सिंचाई का उपयोग करने से पानी की बचत होती है और फसल बेहतर बढ़ती है। खेत में धान का पुआल या भूसा बिछाकर जैविक मल्चिंग करने से मिट्टी की नमी लंबे समय तक बनी रहती है खरपतवार कम होते हैं और आलू की गांठें आकार में एक समान बनती हैं। मल्चिंग से उत्पादन दस से पंद्रह प्रतिशत तक बढ़ जाता है और श्रम खर्च भी काफी कम होता है।

जैविक आलू की बढ़ती मांग से किसानों को मिलता है अधिक लाभ

शहरों और ऑनलाइन बाजार में जैविक आलू की मांग लगातार बढ़ रही है। किसान यदि अपनी फसल को किसान मंडी FPO या सीधी बिक्री के माध्यम से बेचें तो सामान्य आलू से बीस से चालीस प्रतिशत अधिक कीमत मिल सकती है। रासायनिक दवाओं और उर्वरकों का खर्च न होने से जैविक खेती में होने वाला मुनाफा सामान्य खेती की तुलना में दोगुना तक हो सकता है।

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