नमस्कार दोस्तों,आज हम आपको मध्यप्रदेश के दमोह जिले से जुड़ी एक बेहद प्रेरणादायक और दिल को छू लेने वाली कहानी बताने जा रहे हैं। ये कहानी है दो युवा भाइयों की—आकाश और अक्षत सेठ की—जिन्होंने परंपरागत खेती से हटकर कुछ नया करने की ठानी और मेहनत, समझदारी और टेक्नोलॉजी की मदद से ऐसा कमाल कर दिखाया कि पूरे जिले में चर्चा का विषय बन गए।
दमोह जिला मुख्यालय से करीब 18 किलोमीटर दूर अभाना गांव में रहने वाले ये दोनों भाई पेशे से किसान हैं और बीकॉम पास हैं। पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने खेती को ही अपना करियर बनाया और वर्षों से तरबूज और खरबूज की खेती कर रहे हैं। लेकिन इस बार उन्होंने ऐसा कुछ किया जो पूरे प्रदेश में पहली बार हुआ—उन्होंने पीले तरबूज की खेती की, और वो भी बंपर पैदावार के साथ।
तीन साल पहले इन दोनों भाइयों ने प्रयोग के तौर पर सिर्फ 5 क्यारियों में पीले तरबूज के बीज लगाए थे। उन्होंने हर छोटी-बड़ी बात को समझा और समस्याओं से सीख ली। इस अनुभव को देखते हुए इस बार इन्होंने सवा एकड़ में पीले तरबूज की खेती की और शानदार परिणाम मिले। जहां आमतौर पर तरबूज 90 दिन में तैयार होता है, वहीं इन्होंने इसे सिर्फ 60 दिन में तैयार कर दिखाया। इसके पीछे भी इनका स्मार्ट माइंड था—बीज से पौधा पहले ही नर्सरी में तैयार कर लिया गया था, जिससे 30 दिन का समय बच गया।
इस फसल की सिंचाई टपक पद्धति (Drip Irrigation) से की गई, जिससे पानी की बचत भी हुई और पौधों को जरूरत के अनुसार ही पानी मिला। पैदावार को और बेहतर बनाने के लिए उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र से संपर्क कर 40 से ज्यादा मधुमक्खियों के बॉक्स भी रखवाए, जिससे परागण बेहतर हुआ और उत्पादन में 2-3 टन की वृद्धि हुई।
अब बात करें मुनाफे की—तो बाजार में जहां लाल तरबूज थोक में 7-8 रुपए किलो बिक रहा है, वहीं पीला तरबूज 14-15 रुपए किलो में बिक रहा है। जबलपुर, सतना और कटनी जैसे शहरों से व्यापारी खुद इन भाइयों के खेत पर आकर तरबूज खरीद रहे हैं। यानि न सिर्फ मेहनत रंग लाई, बल्कि आर्थिक रूप से भी उन्हें जबरदस्त सफलता मिली।
इन भाइयों का कहना है कि पीला तरबूज अफ्रीका के रेगिस्तानी इलाकों में पहली बार उगाया गया था। कम पानी में भी इसकी अच्छी फसल होती है। और स्वाद की बात करें तो ये लाल तरबूज से ज्यादा मीठा और रसदार होता है।
इस पीले तरबूज की सेहत पर भी कई फायदे हैं। कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. मनोज अहिरवार बताते हैं कि इसमें विटामिन-बी, ए, सी, आयरन, मैग्नीशियम, फॉस्फोरस और बीटा कैरोटीन जैसे जरूरी पोषक तत्व पाए जाते हैं। ये शरीर को गर्मी में ठंडक देने के साथ-साथ वजन घटाने, पाचन सुधारने और स्किन को हेल्दी रखने में भी मदद करता है।
आकाश और अक्षत जैसे युवा किसानों की मेहनत, लगन और सोच को सलाम, जिन्होंने यह दिखा दिया कि अगर इरादा पक्का हो तो किसान भी टेक्नोलॉजी और स्मार्ट एग्रीकल्चर से एक नई दिशा में देश को ले जा सकते हैं। उनकी यह सफलता न केवल दमोह, बल्कि पूरे मध्यप्रदेश के किसानों के लिए प्रेरणा है।
डिस्क्लेमर:
यह लेख केवल सूचना और जागरूकता के उद्देश्य से लिखा गया है। इसमें दी गई जानकारी कृषि विशेषज्ञों और किसानों के अनुभवों पर आधारित है। किसी भी नई खेती की शुरुआत करने से पहले स्थानीय कृषि विभाग या विशेषज्ञ से सलाह अवश्य लें।

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