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मध्य प्रदेश में OBC आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, जल्द सुनवाई का ऐलान

मध्य प्रदेश
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मध्य प्रदेश के लाखों ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) समुदाय के लोगों के लिए एक राहत भरी खबर सामने आई है। सालों से जिस आरक्षण को लेकर लड़ाई लड़ी जा रही थी, अब उस पर सुप्रीम कोर्ट ने जल्द सुनवाई करने का मन बना लिया है। शुक्रवार को देश की सबसे बड़ी अदालत ने इस मुद्दे को तुरंत सूचीबद्ध करने के निर्देश दिए हैं। जस्टिस उज्जल भुइयां और जस्टिस मनमोहन की पीठ ने इस मामले पर अगले सप्ताह सुनवाई करने पर सहमति जता दी है।

यह याचिका ओबीसी समाज के कुछ सदस्यों द्वारा दायर की गई है, जिसमें 2019 में मध्य प्रदेश विधानसभा द्वारा पारित उस कानून को लागू करने की मांग की गई है, जिसके तहत ओबीसी आरक्षण को 14 प्रतिशत से बढ़ाकर 27 प्रतिशत किया गया था। लेकिन अफसोस की बात ये है कि यह कानून अब तक पूरी तरह लागू नहीं हो पाया है।

सरकार पर सवाल, कानून लटका पड़ा है

इस मुद्दे की जड़ें 2019 में उस समय की कांग्रेस सरकार के एक बड़े फैसले से जुड़ी हैं। कांग्रेस सरकार ने 8 मार्च 2019 को एक अध्यादेश लाकर नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में ओबीसी आरक्षण को 14 प्रतिशत से बढ़ाकर 27 प्रतिशत करने का ऐलान किया था। लेकिन जब एक एमबीबीएस छात्र ने इसे हाई कोर्ट में चुनौती दी, तो मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने मेडिकल पीजी एंट्रेंस परीक्षा में इस अध्यादेश को लागू करने पर रोक लगा दी।

इसके बाद जुलाई 2019 में राज्य विधानसभा ने अध्यादेश को बदलते हुए बाकायदा कानून बना दिया। लेकिन इसके बावजूद, आज तक राज्य सरकार ने इसे पूरी तरह लागू नहीं किया है। याचिका में दावा किया गया है कि मध्य प्रदेश सरकार केवल कानूनी राय और लंबित मुकदमे का बहाना बनाकर इस कानून को ठंडे बस्ते में डाल रही है।

आधे से ज्यादा आबादी को सिर्फ 14%?

याचिकाकर्ताओं ने एक बेहद भावनात्मक और जरूरी सवाल उठाया है – जब मध्य प्रदेश में ओबीसी की आबादी करीब 50 प्रतिशत है, तो उन्हें सिर्फ 14 प्रतिशत आरक्षण क्यों? ये सवाल न केवल सामाजिक न्याय का है, बल्कि लाखों युवाओं के भविष्य से भी जुड़ा हुआ है।

याचिका में यह भी कहा गया है कि मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने इस कानून को रोकने के लिए कोई औपचारिक अंतरिम आदेश पारित नहीं किया है, बावजूद इसके राज्य सरकार ने इसे लागू करने से परहेज किया। जबकि संवैधानिक सिद्धांत यह कहता है कि जब तक कोर्ट किसी कानून को असंवैधानिक घोषित नहीं करता, तब तक उसे लागू करना अनिवार्य होता है।

क्या अब न्याय मिलेगा?

अब जबकि सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को गंभीरता से लिया है और जल्द सुनवाई का भरोसा दिया है, ओबीसी समाज को उम्मीद है कि उन्हें वर्षों से मिले अन्याय का जवाब जल्द ही मिलेगा। लाखों युवाओं की आंखों में एक नई उम्मीद जगी है कि शायद अब उन्हें वह हक मिल सकेगा, जो उन्हें संविधान के तहत मिलना चाहिए।

Disclaimer:
यह समाचार सामाजिक हित में तैयार किया गया है, जिसका उद्देश्य केवल जानकारी देना है। इसमें दिए गए सभी तथ्यों और बयानों का स्रोत सार्वजनिक रिपोर्ट और याचिका में उल्लेखित जानकारी है। PravahTimes इस पर किसी प्रकार का कानूनी दावा नहीं करता। अदालत द्वारा अंतिम निर्णय ही सर्वमान्य हे

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