इंदौर। शहर के बीचों-बीच स्थित हुकुमचंद मिल का प्राकृतिक सिटी फॉरेस्ट इन दिनों बड़े खतरे में है। मध्यप्रदेश हाउसिंग बोर्ड द्वारा इस हरे-भरे क्षेत्र को काटकर फ्लैट बनाने की योजना बनाई गई है। इसके विरोध में शनिवार शाम 5 बजे से 6 बजे तक पर्यावरण प्रेमियों और नागरिकों ने राजबाड़ा चौक पर मानव श्रृंखला बनाकर जोरदार प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारियों ने हाथों में तख्तियां लेकर संदेश दिया – “पेड़ बचेंगे तो इंदौर बचेगा, हमें फ्लैट नहीं ऑक्सीजन चाहिए।”
हुकुमचंद मिल परिसर में फैला यह सिटी फॉरेस्ट केवल पेड़ों का समूह नहीं, बल्कि हजारों पक्षियों और जीव-जंतुओं का घर है। यह शहर की आबोहवा को संतुलित रखने और प्रदूषण से बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। नागरिकों का कहना था कि यदि यह प्राकृतिक धरोहर नष्ट हुई तो आने वाली पीढ़ियों को केवल कंक्रीट का जंगल और प्रदूषण मिलेगा।
जानकारी के अनुसार, हाउसिंग बोर्ड की योजना है कि अगले छह महीने में इस सिटी फॉरेस्ट को काटकर यहां फ्लैटों का निर्माण शुरू किया जाए। स्थानीय नागरिकों और सामाजिक संगठनों ने इस योजना का कड़ा विरोध किया है और सरकार से मांग की है कि इस क्षेत्र को स्थायी रूप से संरक्षित वन क्षेत्र घोषित किया जाए।
राजबाड़ा पर हुई इस मानव श्रृंखला में शहर के कई प्रमुख लोग और नागरिक शामिल हुए। इनमें ओपी जोशी, शिवाजी मोहिते, रामेश्वर गुप्ता, दिलीप वाघेला, अजय लागू, अभय जैन, अरविंद पोरवाल, विश्वनाथ कदम, शैला शिंत्रे, संदीप खानवलकर, प्रकाश पाठक, रामस्वरूप मंत्री, प्रणीता दीक्षित, स्वप्निल व्यास, मनीष काले, प्रमोद नामदेव, डॉ. सम्यक जैन, शबाना पारेख, चन्द्रशेखर गवली, प्रकाश सोनी, जावेद आलम, आराध्य दीक्षित, आशीष राय और डॉ. सृष्टि सहित बड़ी संख्या में पर्यावरण प्रेमी उपस्थित रहे। सभी ने एक सुर में कहा कि प्रशासन को तुरंत इस परियोजना को रोकना चाहिए और आने वाली पीढ़ियों के लिए इस फॉरेस्ट को बचाना होगा।
प्रदर्शन में शामिल लोगों ने साफ कहा कि हमें फ्लैट नहीं, हमें ऑक्सीजन चाहिए। पेड़ कटेंगे तो शहर की सांसें रुक जाएंगी। सिटी फॉरेस्ट इंदौर की धड़कन है और इसे हर हाल में बचाना होगा। इंदौर का यह विरोध प्रदर्शन केवल हुकुमचंद मिल के सिटी फॉरेस्ट तक सीमित नहीं है, बल्कि यह शहरवासियों की उस चिंता को दिखाता है जो लगातार बढ़ते प्रदूषण और कंक्रीट के जंगलों से है। नागरिकों का स्पष्ट संदेश है कि विकास जरूरी है, लेकिन पर्यावरण की कीमत पर नहीं।

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