इंदौर जन्माष्टमी उत्सव 2025: राजवाड़ा के पास स्थित गोपाल मंदिर और बांके बिहारी मंदिर का 200 साल पुराना इतिहास और होल्कर परिवार की आस्था की कहानी

इंदौर जन्माष्टमी उत्सव 2025
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इंदौर जन्माष्टमी उत्सव 2025:: जन्माष्टमी नजदीक आते ही हर जगह उत्साह का माहौल है। भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव इस बार शनिवार को देशभर में धूमधाम से मनाया जाएगा। इंदौर में भी तैयारियां जोरों पर हैं, खासकर राजवाड़ा के पास स्थित दो ऐतिहासिक और धार्मिक धरोहर गोपाल मंदिर और बांके बिहारी मंदिर में। यह दोनों मंदिर करीब 200 साल पुराने हैं और इनका निर्माण होल्कर राजघराने की महिलाओं ने कराया था। इनकी कहानी जितनी रोचक है उतनी ही श्रद्धा से भरी हुई भी है।

दरअसल, इंदौर शहर की पहचान 1725 के बाद से शुरू हुई थी और यह होल्कर रियासत का केंद्र बना। मराठा शासकों के शासनकाल में ज्यादातर शिव और देवी के मंदिर बने लेकिन भगवान श्रीकृष्ण के मंदिर अपेक्षाकृत कम थे। इसी कमी को दूर करने के लिए राजवाड़ा के पास गोपाल और बांके बिहारी मंदिर का निर्माण कराया गया। इन मंदिरों का इंदौर की धार्मिक आस्था और इतिहास से गहरा जुड़ाव है।

गोपाल मंदिर का निर्माण महारानी कृष्णाबाई होल्कर ने वर्ष 1832 में कराया था। उस समय करीब 80 हजार रुपये की लागत आई थी जो उनकी निजी निधि से खर्च किए गए थे। यह मंदिर लकड़ी और पत्थरों से बना है और इसकी संरचना मराठा शैली की झलक पेश करती है। प्रवेश द्वार के सामने गरुड़ और गणेश की मूर्तियां हैं, जबकि बाहर का विन्यास और शिखर नागर शैली का है। मंदिर की मजबूती पर संदेह दूर करने के लिए इसके छत पर हाथी को चलाकर परीक्षण भी किया गया था। जब हाथी आसानी से घूम गया तो होल्कर परिवार को संतोष हुआ कि मंदिर मजबूत है। मंदिर बनने के बाद जन्माष्टमी पर इसकी प्राण प्रतिष्ठा की गई और परंपरा के अनुसार मध्यरात्रि में पांच तोपों की सलामी देकर उत्सव शुरू होता था। खास बात यह भी है कि वर्ष 1937 में महाराजा यशवंत राव होल्कर ने हरिजन समाज के लिए मंदिर के द्वार खोल दिए थे। हाल ही में स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत इसका जीर्णोद्धार और सौंदर्यीकरण किया गया है।

वहीं, राजवाड़ा के समीप स्थित बांके बिहारी मंदिर भी उतना ही महत्वपूर्ण है। यह दो मंजिला मंदिर है जिसमें श्रीकृष्ण के तीन विग्रहों के साथ भगवान दत्तात्रेय का विग्रह भी है। यहां जन्माष्टमी के अलावा दत्तात्रेय जयंती भी विशेष रूप से मनाई जाती है। इस मंदिर में पंच अवतार श्रीकृष्ण, दत्तात्रेय, चक्रपाणि महाराज, चक्रधर महाराज और गोविंद प्रभु की पूजा होती है।

इन मंदिरों के निर्माण के पीछे महानुभाव पंथ का भी प्रभाव रहा। इस पंथ के संस्थापक चक्रधर स्वामी महाराष्ट्र के समाज सुधारक संत थे और इस पंथ में भगवान कृष्ण को ही सर्वोच्च महत्व दिया गया है। यह जाति प्रथा के विरोध में खड़ा हुआ आंदोलन था और होल्कर राजघराने की महिलाएं भी इसके अनुयायी थीं। इसी कारण उन्होंने श्रीकृष्ण के इन मंदिरों का निर्माण करवाया और इन्हें इंदौर की पहचान बना दिया।

आज ये दोनों मंदिर न सिर्फ इंदौर की धार्मिक आस्था का केंद्र हैं बल्कि 200 साल पुराने इतिहास और परंपरा के जीवंत प्रतीक भी हैं। जन्माष्टमी पर इन मंदिरों में होने वाला विशेष अभिषेक और पूजन हर किसी के लिए अद्भुत और दिव्य अनुभव होता है।

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