आज हम आपको एक ऐसी महिला किसान की कहानी सुनाने जा रहे हैं, जिन्होंने अपनी मेहनत और हौसले से जैविक खेती में सफलता की नई इबारत लिखी है। हिमाचल प्रदेश के बंजार उपमंडल के तरगाली गांव की अनीता देवी ने न सिर्फ अपनी जिंदगी बदली, बल्कि कई अन्य किसानों को भी जैविक खेती की ओर प्रेरित किया। उनकी मेहनत और लगन का नतीजा यह है कि आज वे 13 बीघा जमीन में जैविक खेती कर सालाना 40 लाख रुपये तक की कमाई कर रही हैं। चलिए, उनकी इस प्रेरणादायक यात्रा को विस्तार से जानते हैं।
संघर्ष भरे सफर से मिली सफलता
दोस्तों, अनीता देवी हमेशा से खेती-किसानी में जुड़ी रही हैं। शादी के बाद उन्होंने पारंपरिक खेती से शुरुआत की, जिसमें केमिकल खाद और स्प्रे का इस्तेमाल होता था। वे लहसुन, गोभी, मटर और टमाटर उगाती थीं, लेकिन धीरे-धीरे महसूस किया कि रासायनिक खेती से उनकी जमीन की उर्वरता खत्म हो रही है। इतना ही नहीं, जब वे खेतों में स्प्रे करती थीं, तो उनके हाथों में खुजली होने लगती, शरीर थकान महसूस करता और कई बार बीमार भी पड़ जाती थीं।
इसी दौरान, उन्होंने हिमाचल प्रदेश के प्राकृतिक खेती निदेशक द्वारा आयोजित एक कैंप में हिस्सा लिया और जैविक खेती के बारे में सीखा। इस कैंप ने उनके सोचने का तरीका बदल दिया। उन्होंने ठान लिया कि अब वे पूरी तरह से जैविक खेती अपनाएंगी, ताकि न सिर्फ उनकी सेहत अच्छी रहे, बल्कि जमीन की उर्वरता भी बनी रहे।
12 बिस्वा से 13 बीघा तक का सफर
अनीता देवी ने सबसे पहले 2018 में 12 बिस्वा जमीन में जैविक खेती की शुरुआत की। दोस्तों, जैविक खेती आसान नहीं होती, लेकिन अनीता ने गोबर खाद और देसी तरीकों का इस्तेमाल कर मिट्टी की उर्वरता को फिर से बढ़ाया। जब उन्हें इस खेती से अच्छा परिणाम मिलने लगा, तो उन्होंने 3 बीघा में जैविक खेती का एक मॉडल तैयार किया। इस मॉडल में उन्होंने सेब को मुख्य फसल के रूप में रखा, लेकिन साथ में मिश्रित खेती अपनाई और 10-12 अलग-अलग फसलें उगाईं।
इसके अलावा, उन्होंने नर्सरी तैयार करने का भी काम शुरू किया। वे बताती हैं कि 2020-21 में उन्होंने 1500 पेड़ लगाए थे, अगले साल 15,000 हुए, फिर 20,000 और इस बार उन्होंने 40,000 पौधे तैयार किए हैं। इन पौधों की गुणवत्ता इतनी अच्छी थी कि लोग खुद इन्हें खरीदने आने लगे। इस तरह, अनीता ने सिर्फ फसल से ही नहीं, बल्कि नर्सरी से भी शानदार आमदनी करनी शुरू कर दी।
जैविक खेती से मुनाफा और कम लागत
दोस्तों, जैविक खेती का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसमें लागत कम आती है और मुनाफा ज्यादा होता है। अनीता बताती हैं कि पहले वे रासायनिक खेती में हर साल 50,000 से 1 लाख रुपये तक खर्च करती थीं, लेकिन जैविक खेती अपनाने के बाद यह खर्च घटकर मात्र 10,000-15,000 रुपये रह गया।
सेब की खेती से उन्हें 200 रुपये प्रति किलो के हिसाब से सालाना 4-5 लाख रुपये की कमाई हो जाती है, लेकिन असली मुनाफा नर्सरी से होता है। अब तक 25,000 पौधे बिक चुके हैं, जिससे 32-33 लाख रुपये की कमाई हुई है। इस तरह, कुल मिलाकर उनकी सालाना कमाई 38-39 लाख रुपये तक पहुंच जाती है।
परिवार और समाज का बदला नजरिया
शुरुआत में अनीता को अपने परिवार से ज्यादा समर्थन नहीं मिला। दोस्तों, जब भी कोई नया काम शुरू किया जाता है, तो कई बार अपनों का भी भरोसा जीतना पड़ता है। अनीता के साथ भी ऐसा ही हुआ। जब उन्होंने जैविक खेती की शुरुआत की, तो उनके घरवाले इस पर ज्यादा विश्वास नहीं करते थे। लेकिन छह महीने की मेहनत के बाद जब उन्होंने मिट्टी की उर्वरता और फसल की गुणवत्ता में सुधार देखा, तो पूरा परिवार उनका साथ देने लगा।
आज अनीता की सफलता पूरे गांव के लिए प्रेरणा बन चुकी है। 2019 में उन्हें बंजार ब्लॉक की मास्टर ट्रेनर बनाया गया और अब तक वे 36 प्रशिक्षण शिविरों में 300 से अधिक किसानों को जैविक खेती के गुर सिखा चुकी हैं। इनमें से 70% महिलाएं हैं, जो अब खुद आत्मनिर्भर बन रही हैं।
सम्मान और उपलब्धियां
अनीता देवी की मेहनत को कई बड़े मंचों पर सम्मानित किया गया है। वे बताती हैं कि 2010 में उन्हें बेस्ट फार्मर अवार्ड मिला था। हाल ही में, लुधियाना में आईसीएआर की ओर से इनोवेटिव वुमन एंटरप्रेन्योर अवार्ड भी मिला। पालमपुर कृषि विश्वविद्यालय ने उन्हें “उन्नत एवं प्रेरणास्रोत कृषि दूत” के सम्मान से नवाजा, जबकि राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान, हरियाणा ने भी उन्हें सम्मानित किया है।
जैविक खेती को आंदोलन बनाने की योजना
अब अनीता सिर्फ अपने खेतों तक सीमित नहीं रहना चाहतीं, बल्कि वे चाहती हैं कि हिमाचल प्रदेश में जैविक खेती एक आंदोलन बने। उनका सपना है कि आने वाले वर्षों में और अधिक किसान इस पद्धति को अपनाएं, जिससे उनकी आमदनी भी बढ़े और सेहत भी अच्छी बनी रहे।
दोस्तों, अनीता देवी की यह कहानी हमें सिखाती है कि अगर हमारे अंदर कुछ करने का जज्बा हो, तो सीमित संसाधनों के बावजूद भी हम बड़ी सफलता हासिल कर सकते हैं। जैविक खेती न सिर्फ एक बेहतर विकल्प है, बल्कि यह हमारी सेहत, पर्यावरण और आर्थिक मजबूती के लिए भी फायदेमंद है। उम्मीद है कि उनकी इस प्रेरणादायक यात्रा से और भी किसान जैविक खेती की ओर कदम बढ़ाएंगे और खुद को आत्मनिर्भर बनाएंगे।
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खेती-किसानी और कृषि तकनीकों पर 5+ वर्षों का अनुभव। किसानों के लिए उपयोगी जानकारियां और नई तकनीकों पर शोधपूर्ण लेख लिखते हैं।